Approaches to the study of a language Synchronic Linguistics and diachronic linguistics

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Approaches to the study of a language: Synchronic and diachronic.




भाषाविज्ञान (Linguistics) में भाषा के अध्ययन के लिए दो दृष्टिकोण (approach - तरीके) विकसित हुए हैं।  ये दो दृष्टिकोण synchronic (समकालिक) और diachronic (ऐतिहासिक) हैं।  Synchronic Approach का concept एक स्विस भाषाविद् Ferdinand de Saussure ने अपनी कृति Course on General Linguistics में दिया था जिसे 1916 में मरणोपरांत प्रकाशित किया गया था। उनसे पहले के भाषाविद मुख्य रूप से भाषाओं के ऐतिहासिक विकास के अध्ययन पर ध्यान केंद्रित करते थे।  सॉसर (Saussure) ने किसी समयसीमा में भाषा को उसकी किसी एक अवस्था पर अध्ययन को प्राथमिकता दी।

 Synchronic Linguistics (समकालिक भाषाविज्ञान):-

 Synchronic Linguistics, जिसे discriptive (वर्णनात्मक) या general (सामान्य भाषाविज्ञान) के रूप में भी जाना जाता है, एक विशेष समय में किसी भाषा का विश्लेषणात्मक अध्ययन है आमतौर पर उसके वर्तमान स्वरूप में।  हालाँकि अतीत में किसी भी समय विशेष पर किसी भाषा का अध्ययन भी इसी के अंतर्गत आता है लेकिन वह अध्ययन उस समय की भाषा की स्थिर अवस्था का ही होना चाहिए।  इसका अर्थ है कि इस approach के अन्तर्गत किसी विशेष अवधि में भाषा का अध्ययन उसके पहले या बाद के चरणों के संदर्भ के बिना किया जाता है।


Synchronic Linguistics इस बात का विश्लेषण करती है कि लोग एक निश्चित समय पर किसी भाषायी समुदाय में अपने विचारों को साझा करने के लिए भाषा का उपयोग कैसे करते हैं।  यह इसका अध्ययन और तुलना करती है कि स्थानिक रूप से अलग-अलग लोगों द्वारा एक ही भाषा का अलग-अलग ढंग से उपयोग कैसे किया जाता है।  यह किसी भाषा की विशेषताओं के व्याकरण, वर्गीकरण और व्यवस्था का अध्ययन है।

 Diachronic Linguistics (ऐतिहासिक भाषाविज्ञान):-

डायक्रोनिक भाषाविज्ञान, जिसका शाब्दिक अर्थ है समय के आर-पार, इतिहास में विभिन्न समयों के साथ से एक भाषा का अध्ययन है।  यह एक भाषा के विकास का अध्ययन है।  यह जाँच करता है कि कैसे एक भाषा में बदलाव आता है और समय के साथ किस प्रकार से उसमे परिवर्तन हुए हैं।  इसकी प्रमुख Study Concerns इस प्रकार हैं:


 1) विशेष भाषाओं में देखे गए परिवर्तनों का वर्णन करना और उनका लेखा-जोखा रखना।


 2) भाषाओं के पूर्व-इतिहास का पुनर्निर्माण करना और उनमें संबंध का निर्धारण करना, उन्हें भाषा परिवारों के समूह में रखना।


 3) भाषा कैसे और क्यों बदलती है, इसके बारे में सिद्धांत विकसित करना।


 4) भाषायी समुदायों के इतिहास का वर्णन करने के लिए।


 5) शब्दो के इतिहास या स्त्रोत का अध्ययन करना।

 [संदर्भ: -1) ThoughtCo।  2) Differencebetween.com]

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